तो, बस जाएंगे जाकर कहीं और…

stephen_hawking-famous-scientist विश्वविख्यात वैज्ञानिक स्टीफेन हॉकिंग की राय मानें तो मानव जाति को अपना अस्तित्व बचाने के लिए अब ग्रह-उपग्रहों पर बसने की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। मानव की अपनी करतूतों से धरती का जो हाल बेहाल होता चला जा रहा है, उसे देख कर लगता नहीं कि हमारा यह निराला ग्रह कुछ सदियों के बाद रहने लायक रह जाएगा। जीने के लिए जो कुछ प्रकृति ने दिया था, उसे हम विकास की बेतहाशा दौड़ में बर्बाद करते जा रहे हैं। हवा में दिन ब दिन और अधिक जहर घुल रहा है, पानी प्रदूषित होता जा रहा है, धरती जो भोजन देती है, वह भी विषाक्त होती जा रही है। गरमी से भभकती धरती पर ग्लेशियर पिघल रहे हैं, नदियां सूख और सिमट रही हैं, ऋतुओं की समय सारणी गड़बड़ा गई है। और, ऊपर से दिन दूनी, रात चौगुनी गति से बढ़ती आबादी! जीने के लिए भोजन देने वाली धरती का रकबा घट रहा है, मगर भोजन के कौर के लिए खुलने वाले मुखों की तादाद लाखों में बढ़ती जा रही है। फिर, धरती पर शांति और सौहार्द्र से जीने की कोशिश भी भला कौन कर रहा है? पूरी धरती परमाणु हथियारों का खतरनाक जखीरा बन चुकी है। किसी भी सिरफिरे का एक गलत कदम पूरी पृथ्वी को युद्ध की आग में झौंक सकता है और परमाणु हथियारों की कुंजी पर दबी उसकी अंगुली धरती पर धड़कते पूरे जीवन को नेस्तनाबूद कर सकती है। भावी विनाश के टाइम बम की टिक-टिक पर टिकी इस धरती पर जीवन कब तक सुरक्षित रहेगा, कौन जानता है। शायद, इसीलिए स्टीफेन हॉकिंग की राय पर ध्यान देने का समय आ गया है।

हॉकिंग का कहना तो ठीक है, मगर जाएं तो जाएं कहां? अंतरिक्ष विजय के बाद लगभग आधी सदी बीत चुकी है। इस दौरान इंसान ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में बेशक हैरतअंगेज कामयाबी हासिल की है मगर जीने लायक जमीन अभी भी कहीं नहीं मिली है। स्पुतनिक से पहली बार अंतरिक्ष में छलांग लगा कर अपने तमाम अंतरिक्ष यानों से मनुष्य ने सौरमंडल की टोह ली है। चांद की जमीन पर उसके चरण पड़े, मगर वहां बसने लायक वातावरण नहीं मिला। मंगल की धरती को टटोला, लेकिन वहां भी मानव बस्ती बसाने लायक परिस्थितियां फिलहाल नहीं दिखाई दे रही हैं। बृहस्पति और शनि तो खैर गैस के विशाल गाले हैं। उनके उपग्रहों में भी जीवन की तलाश जारी है।

तो क्या कहीं बसने लायक धरती मिलेगी? या, कहीं और भी जीवन की धड़कन सुनाई देगी? कोशिशें जारी हैं। पृथ्वी से परे जीवन की खोज की भी और जीने लायक धरती की भी। इस कोशिश में विश्व की विशालकाय दूरबीनों और अंतरिक्ष से ब्रह्मांड के ओर-छोर को टटोलतीं दूरबीनों ने बड़ी मदद की है। इनसे सौरमंडल के पार अंतरिक्ष की असीम गहराइयों में झांकना संभव हो गया है और उस पार के नए नक्षत्रों के गिर्द चक्कर लगाते अनजाने ग्रहों का पता लग रहा है। सौरमंडल के पार अब तक ऐसे लगभग 220 छोटे-बड़े ग्रहों का पता लग चुका है। उन ग्रहों से आते प्रकाश का विश्लेषण करके खगोल वैज्ञानिक इस बात का पता लगा रहे है। कि अया उनमें मानव के जीने लायक परिस्थितियां होंगी या नहीं। पृथ्वी पर जितनी तेजी से आबादी बढ़ती जा रही है और पृथ्वी के अस्तित्व का संकट जितना ही बढ़ता जा रहा है उसे देखते हुए मनुष्य की कहीं और जा बसने की मंशा बढ़ती जा रही है। सौरमंडल से बाहर के ग्रहों की परिस्थितियों का पता लगाने में अभी कम से कम दो-तीन दशकों का समय लगने का अनुमान है।

लेकिन, इसी बीच चिली स्थित यूरोपियन सदर्न आब्जवेट्री यानी ई एस ओ की 3.6 मीटर की दूरबीन से स्विस, फ्रांसीसी और पुर्तगाली खगोल वैज्ञानिकों के एक दल ने हमारी पृथ्वी से 20.5 प्रकाश वर्ष की दूरी पर एक और धरती का पता लगा लिया है जिसमें शायद मानव के जीने लायक परिस्थितियां मिल जाएं। वह नया खोजा गया ग्रह ग्लीसे 5817 सी हमारी पृथ्वी से आकार में लगभग डेढ़ गुना और भार में करीब पांच गुना बड़ा है। उसका सूर्य एक ‘लाल दानव’ तारा है जो हमारे सूर्य की तुलना में आकार में छोटा है और उसका तेज भी कम है। नए ग्रह का शायद वायुमंडल भी होगा, जिसका पता भविष्य में लगेगा। सबसे अच्छी बात यह है कि उस ग्रह का तापमान केवल शून्य डिग्री सेल्सियस से 40 डिग्री से. तक होगा जो मनुष्य के जीने के लिए उचित तापमान है। वहां पानी होने की संभावना भी जताई गई है। अगर ऐसा हुआ, तो संभव है वहां जीवन भी हो।

प्रख्यात खगोल विज्ञानी कार्ल सांगा ब्रह्मांड के अन्य ग्रहों में जीवन की संभावना के सबसे बड़े समर्थक थे। उनका कहना था कि हमें अपनी पृथ्वी की परिस्थितियों में ही जीवन के विकास की कल्पना न करके अन्य परिस्थितियों में भी इसकी संभावना पर विचार करना चाहिए। उनका विचार था कि बृहस्पति के समान गैसमय ग्रहों में ‘गुब्बारों’ के समान जीव जन्म ले सकते हैं। वे जीव हो सकता है सूर्य की किरणों की सहायता से कार्बनिक अणु बनाकर खा-पचा रहे हों और हीलियम और दूसरी गैसें बाहर छोड़ रहे हों। हो सकता है ऐसे गुब्बारों जैसे जीव गैसों की धाराओं के साथ इधर से उधर विचरण करते हों।

कार्ल सांगा ने अन्य ग्रहों में जीवन की संभावना का एक गणित भी सुझाया था। मान लीजिए हमारी आकाशगंगा के दस में से केवल एक तारे का ग्रह मंडल है। ऐसे दस तारों में से केवल एक तारे के ग्रह मंडल के एक ग्रह में जीवन का विकास हुआ। ऐसे दस ग्रहों में से केवल एक ग्रह में विकसित प्राणी हैं। ऐसे दस विकसित प्राणियों वाले ग्रहों में से केवल एक ग्रह में बुद्धिमान प्राणी हैं। ऐसे दस बुद्धिमान प्राणियों वाले ग्रहों में से केवल एक ग्रह में सभ्यता का विकास हुआ। ऐसे दस विकसित सभ्यता वाले ग्रहों में से केवल एक ग्रह में हमारी पृथ्वी के समान सभ्यता है। तब भी केवल हमारी आकाशगंगा के ही अन्य ग्रहों में कम से कम 10,000 सभ्यताएं हो सकती हैं! beautiful-earth

बहरहाल, अगर अनजान ग्रह में जीवन हुआ तो वह कैसा होगा? जीवन का जन्म दो तरह से हो सकता है। वैज्ञानिकों की धारणा है कि या तो रसायनों के मेल से बने एमिनो अम्लों से जीवन का जन्म हुआ यानी एक कोशीय जीव बने, फिर उनसे बहुकोशिकीय जीव बन गए। विकास क्रम में धीरे-धीरे बुद्धिमान जीवों का विकास हो गया। या फिर, ब्रह्मांड में जीवन कहीं और पैदा हुआ और उसे धूमकेतुओं ने ब्रह्मांड के कई सौरमंडलों में अपने सूर्यों की परिक्रमा करते ग्रहों-उपग्रहों तक पहुंचा दिया होगा। यानि, अगर वहां जीवन हुआ तो वह बिल्कुल अजीबो-गरीब अनजाने जीवों के रूप में हो सकता है, या फिर जीवन का यदि एक ही तरह का बीज बोया गया होगा तो कौन जाने, वह हमारी धरती पर पनपे जीवन का ही कोई रूप हो! मगर याद रहे, कहते हैं हमारी पृथ्वी पर किसी विशाल धूमकेतु या उल्का ने करोड़ों वर्ष पूर्व डायनोसौरों का जीवन नष्ट कर दिया था अन्यथा विकास के क्रम में शायद वे सबसे बुद्धिमान दोपाए होते। हो सकता है, किसी अनजान ग्रह में उस तरह की प्राकृतिक विपदा से बचा हुआ जीवन ही विकास के क्रम में पनपता गया हो। अगर ऐसा हो गया हो तो फिर विकास की सर्वोच्च सीढ़ी पर सबसे बुद्धिमान प्राणी कौन होगा? डायनोसौर? या कोई कीट? या कोई स्तनपाई प्राणी? जीने के लिए अस्तित्व की लड़ाई में कौन जीता होगा वहां? क्या वह मनुष्यनुमा जीव भी हो सकता है? अगर, विकास की सर्वोच्च सीढ़ी पर वहां भी मनुष्य होगा तो क्या उसने भी उस ग्रह के ऐसे हालात बना दिए होंगे कि शायद वे भी सोच रहे हों- बस जाएंगे जाकर कहीं और! तौ, हो सकता है उनके खगोल विज्ञानियों की किसी टोली ने शायद हमारा ग्रह भी देख लिया हो! ऐसा हुआ तो फिर कौन किससे सबक लेगा? हम या वे? बेहतर यही है कि हम अनजान ग्रहों की खोज तो करते रहें मगर समय पर चेत कर अपनी इस प्यारी और निराली दुनिया को नष्ट होने से बचाएं ताकि इसमें जीवन की धड़कन बनी रहे।

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2 Thoughts to “तो, बस जाएंगे जाकर कहीं और…”

  1. noorul amin

    Devendr ji maine bachpan main aap ki kirti “surj ka angan main” padha tah. tab main 10 saal ka tha. aur aaj bhi main use padha ta hoon to lagta jyse phir bacha ban gya hoon. ye kahani vigyan pargti main chpi thi . kai kisto mai .samay ko kad karne ka liye aap ka dhanywad.

  2. बहुत-बुहत धन्यवाद नुरुल जी। आपने ‘सूरज के आंगन में’ पढ़ी। और अब तक याद है। ‘सौरमंडल की सैर’ नेशनल बुक ट्रस्ट से छपी है। उसे जरूर पढ़िएगा और बताइएगा कि कैसी लगी।

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